श्री रामचरितमानस के उत्तर काण्ड में वर्णित इस रूद्राष्टक की कथा कुछ इस प्रकार है। कागभुशुण्डि परम शिव भक्त थे। वो शिव को परमेश्वर एवं अन्य देवों से अतुल्य जानते थे। उनके गुरू श्री लोमेश शिव के साथ-साथ राम में भी असिम श्रद्धा रखते थे। इस बात के कारण कागभुशुण्डि का अपने गुरू के साथ मत-भेद था। गुरू ने समझाया कि स्वयं शिव भी राम नाम से आनन्दित रहते हैं तो तू राम की महिमा को क्यों अस्विकार करता है। ऐसे प्रसंग को शिवद्रोही मान कागभुशुण्डि अपने गुरू से रूष्ट हो गए।
इसके उपरांत कागभुशुण्डि एकबार एक महायज्ञ का आयोजन कर रहे थे। उन्होंने अपने यज्ञ की सुचना अपने गुरू को नहीं दी। फिर भी सरल हृदय गुरू अपने भक्त के यग्य में समलित होने को पहुँच गए। शिव पुजन में बैठे कागभुशुण्डि ने गुरू को आया देखा, पर अपने आसन से न उठे, न उनका कोई स्तकार ही किया। सरल हृदय गुरू ने एक बार फिर इसका बुरा नहीं माना। पर महादेव तो महादेव ही हैं। वो अनाचार क्यों सहन करने लगे?
भविष्यवाणी हुई – अरे मुर्ख, अभिमानी ! तेरे सत्यज्ञानी गुरू ने सरता वस तुझपर क्रोध नहीं किया। लेकिन मैं तुझे शाप दुंगा। क्योंकि नीति का विरोध मुझे नहीं भाता। यदि तुझे दण्ड ना मिला तो वेद मार्ग भ्रष्ट हो जाएंगे। जो गुरू से ईर्ष्या करते हैं वों नर्क के भागी होते हैं। तू गुरू के समुख भी अजगर की भांति ही बैठा रहा; अत: अधोगति को पाकर अजगर बनजा तथा किसी वृक्ष की कोटर में ही रह।
इस प्रचंण शाप से दुःखी हो तथा अपने शिष्य के लिए क्षमा दाना पाने की अपेक्षा से शिव को प्रसन्न करने हेतु गुरू ने प्रार्थना की तथा रूद्राष्टक की वाचना की तथा आसुतोष भगवान को प्रसन्न किया।
कथासार में शिव अनाचारी को क्षमा नहीं करते; यद्यपि वो उनका परम भक्त ही हो।

शिव दर्शन,धर्मशास्त्र और परंपरा (THEOLOGY, PHILOSOPHY AND TRADITION OF SHIVA) Sadashivbhakt.com is wholly dedicated to bring you information on various aspects of shivisam and worship of Lord Shiv, without aligning ourselves to any particular sect or religious teacher. We hope we shall be able to accomplish this goal to your satisfaction.
Thursday, October 1, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
अनादि, अनंत, देवाधिदेव, महादेव शिव परंब्रह्म हैं| सहस्र नामों से जाने जाने वाले त्र्यम्बकम् शिव साकार, निराकार, ॐकार और लिंगाकार रूप में देवताओं, दानवों तथा मानवों द्वारा पुजित हैं| महादेव रहस्यों के भंडार हैं| बड़े-बड़े ॠषि-महर्षि, ज्ञानी, साधक, भक्त और यहाँ तक कि भगवान भी उनके संम्पूर्ण रहस्य नहीं जान पाए|.सदाशिव भक्त.com उन्ही परंपिता जगतगुरू महादेव शिव के चरित्रचित्रण की एक तुच्छ किंतु भक्तिपूर्ण प्रयास है …
No comments:
Post a Comment