शिव तत्व से ही सृष्टि उत्पन्न हुई। इसलिए सृष्टि के जन्मदाता का विचार तो हो सकता है, लेकिन शिव तो अजन्मा, अविनाशी, अखंड हैं। वे तो स्वयं मृत्यु के स्वामी, संहार के देवता हैं। संहारक का कौन संहार करेगा। भगवान शिव तो जीवन और मृत्यु दोनों के साक्षी हैं। संपूर्ण सृष्टि राममय है और यह अनंत बार भगवान शिव से ही प्रकट हुई है: शंभु कीन्ह यह चरित सुहावा। भगवान शिव श्रद्धा और विश्वास के समग्र रूप हैं। जीवन की कोई भी क्रिया तभी प्रारंभ होती है, जब व्यक्ति में विश्वास और श्रद्धा का भाव होता है। एक का भी अभाव होने पर क्रिया नहीं हो सकती। भगवान शिव पूर्ण विश्वास हैं। कहते हैं कि जो टूट जाए वह श्वास है और जो कभी न टूटे वह विश्वास है। विश्वास जीवन है, अविश्वास मृत्यु। हमारे शिव सदैव वटवृक्ष की छाया में ही बैठते हैं। वटवृक्ष भी विश्वास है: वट विश्वास अचल नहीं धर्मा। भगवान शिव को सभी भोला कहकर पुकारते हैं। इसका कारण यह है कि विश्वास सदैव भोला होता है। इसमें कोई छल या दिखावा नहीं होता। अविश्वासी व्यक्ति संशयालु होता है। अंदर से बहुत कमजोर होता है। इसी के कारण वह छल कपट करता है। शिव सदैव सहज रहते हैं, इसलिए शांत रहते हैं। धरे शरीर शांत रस जैसे। भगवान शिव का साक्षात्कार करने के लिए एक बार ठीक से उनके स्वरूप का दर्शन करें:''जटा मुकुट सुरसरित सिर-लोचन नलिन विशाल। नीलकंठ लावण्यनिधि-सोह बाल विधु भाल।'' जटा मुकुट: सभी लोग स्वर्ण मुकुट चाहते हैं। मुकुट प्रतिष्ठा का प्रतीक है। जटाएं झंझट-जंजाल और क्लेशों की प्रतीक हैं। शिव ने सृष्टि के संपूर्ण जंजालों को भी अपने शीश पर प्रतिष्ठित कर लिया है। झंझटों को भी शोभा का रूप दे दिया है। हम जहां तहां झंझटों की जटाएं खोलकर बैठ जाते हैं। शिव इन झंझटों को भी आभूषण के रूप में स्वीकार करते हैं। सुरसरित सिर: शिव के शांत रहने का यह भी कारण है कि इनके शीश पर श्री गंगाजी हैं। श्रीगंगाजी उज्ज्वलता, धवलता और शीतलता के सतत प्रवाह की प्रतीक हैं। निर्मलता और पवित्रता श्रीगंगाजी का गुण है। जिसके विचारों में गंगा जैसे गुण होंगे वह सदैव शांत और प्रवहवान रहेगा। शिव का तीसरा गुण है: ''लोचन नलिन विशाल'' भगवान शिव के नेत्र निर्लिप्त हैं, सुंदर हैं और विशाल हैं। नीलकंठ- जगत के संपूर्ण विष को अपने कंठ में ही समा लेता है। न तो सटकता है और न ही उगलता है, वही शिव है। विषैली बातों को पेट में गांठ बांधकर भी मत रखिए और बोलिए भी मत। अन्यथा संघर्ष और अशातिं बनी रहेगी। शिव विष पीकर भी कंठ से जगत को सदैव श्रीराम कथा का अमृत प्रदान करते हैं ''हरषि सुधा सम गिरा उचारी'' जो इतने गुण धारण कर लेता है, वह स्वयं ही लावण्य निधि हो जाता है। सोह बाल विधु भाल का अर्थ है चंद्र जैसे शीतल, निर्मल, उज्ज्वल विचारों वाले मन को अपने शीष पर प्रतिष्ठा देते हैं। सीखने के लिए शिवजी के स्वरुप को ग्रहण करना आवश्यक है। शिव सदैव श्मशान में विचरण और नंदी की सवारी करते हैं। श्मशान मृत्यु की याद दिलाता है जो प्रतिदिन मृत्यु को याद रखेगा वह अनेकानेक प्रकार केपापों से बच जायेगा। मौत पड़ोसी को तो जानती है लेकिन मेरा घर उसे मालूम नहीं है। शिव कहते हैं कि भैया भले ही श्मशान में मत रहो पर सदा श्मशान को याद रखो कि एक दिन यहां भी आना है। इसी के साथ भगवान शिव सदैव नंदी की सवारी करते हैं। नंदी धर्म का प्रतीक है। सदैव धर्म के वाहन पर चलोगे तो जीवन यात्रा सुखद और आनंदमय होगी। हम धर्म की चर्चा तो बहुत करते हैं लेकिन धर्म पर चलते नहीं हैं। यही चाहते हैं कि दूसरे सभी धर्म पर चलें। मेरा तो यही मार्ग ठीक है। शिव की कृपा चाहिए तो जीवन को श्रद्धा से भरिये और भगवान श्रीराम की कृपा चाहिए तो जीवन शिव से भरिये। भगवान ने सभी को चेतावनी केस्वर में कहा है-'' शिव पद कमल जिन्हहिं रति नाहीं- रामहि ते सपनेहु न सोहाहीं।।'' श्रीनारदजी को तो भगवान ने बड़े स्पष्ट शब्दों में कह दिया है- ''जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी- सो न पाव मुनि भगति हमारी''निष्कर्ष यही है कि प्रभु की कृपा चाहिए तो शिव कृपा प्राप्त करें और शिव कृपा प्राप्त करनी हो तो सहज बनें, सरल बनें। भोले बम-बम-बम का यही सार्थक अर्थ है।
ऐसे करें शिवरात्रि का पूजन वािर्थियों के लिए -भोले को गंगाजल और दूध से स्नान कराएंगे, बुद्धि कुशाग्र होगी। व्यापारियों के लिए-कारोबार में घाटे को दूर करने केलिए शंकर जी को ग्यारह लोटे जल के साथ घी से स्नान कराएं। - ऋण मुक्ति के लिए - गणेशजी का मंत्र से ध्यान करें: - मंगलो भूमिपुत्रश्च ऋणहर्ता धनप्रद: ऋणहर्ता स्थिरासनो महाकाय: सर्वकर्मविरोधक:॥ तदुपरांत भगवान शंकर का रुद्राभिषेक करें और मंत्र पढ़ें- यत्र यत्र स्थितो देव: सर्वव्यापी महेश्वर: यो गुरु सर्व देवानां यकाराय नमोनम:। रोग नाश के लिए -काले तिलों से शंकर जी का जलाभिषेक करें। -11 कमलगट्टे अर्पण करें।
सुख और शातिं केलिए -गंगाजल, दूध, दही, घी, चीनी से शंकर जी का अभिषेक करें। महिलाओं के लिए -पार्वती और शंकर दोनों की पूजा करें। पार्वती जी की कृपा प्राप्त करने के लिए सुहाग का सामान विशेषकर सिंदूर अर्पण करें। महत्व -इस शिवरात्रि पर गौरी और शंकर केविवाह का प्रसंग अवश्य पढ़ना चाहिए। श्रीरामचरितमानस के बालकांड की 91 से लेकर 100 संख्या की चौपाई का स्तवन करें। इसमें भगवान शंकर के शृंगार और विवाह प्रसंग हैं। पाणिग्रहण जब कीन्ह महेशा, हिय हरषे तब सकल सुरेसा। बेदमंत्र मुनिबर उच्चरहीं। जय जय जय संकर सुर करहीं। द्वादशी और त्रयोदशी या त्रयोदशी और चतुर्दशी के मिलन की रात को यज्ञ भी इष्ट फल देता है।

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Saturday, June 13, 2009
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अनादि, अनंत, देवाधिदेव, महादेव शिव परंब्रह्म हैं| सहस्र नामों से जाने जाने वाले त्र्यम्बकम् शिव साकार, निराकार, ॐकार और लिंगाकार रूप में देवताओं, दानवों तथा मानवों द्वारा पुजित हैं| महादेव रहस्यों के भंडार हैं| बड़े-बड़े ॠषि-महर्षि, ज्ञानी, साधक, भक्त और यहाँ तक कि भगवान भी उनके संम्पूर्ण रहस्य नहीं जान पाए|.सदाशिव भक्त.com उन्ही परंपिता जगतगुरू महादेव शिव के चरित्रचित्रण की एक तुच्छ किंतु भक्तिपूर्ण प्रयास है …
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