प्रायः हम प्रकाश को सत्य, ज्ञान , शुभ, पून्य तथा सात्विक शक्तियों का द्योतक समझते हैं तथा अंधकार की तुलना अज्ञान, असत्य जैसे अवगुणों से करते हैं| फिर शिव “रात्रि” क्यों? क्यों शिव को अंधकार पसंद है? क्यों महाशिवरात्रि शिव भक्तों के लिए सर्वाधिक महत्व रखता है? वस्तुतः अंधकार की तुलना अज्ञान तथा अन्य असात्विक गुणों से करना ही सबसे बडी भ्रांति है| वास्तव में अंधकार एवं प्रकाश एक दु्सरे के पुरक हैं जैसे शिव और उनकी सृष्टी | अंधकार शिव हैं, प्रकाश सृष्टी | जो भी हम देखते हैं … धरती, आकाश, सूर्य, चंद्र, ग्रह नक्षत्र, जिव, जंतु, वृक्ष, पर्वत, जलाशय, सभी शिव की सृष्टी हैं, जो नहीं दिखता है वह शिव हैं|
जिस किसी का भी श्रोत होता है, आदि होता है, उसकी एक निरधारित आयू होती है तथा उसका अंत भी होता है| प्रकाश का एक श्रोत होता है | प्रकाशित होने के लिए श्रोत स्वयं को जलता है तथा कुछ समय के उपरांत उसकी अंत भी होता है| यह महत्वपूर्ण नहीं है कि प्रकाश का श्रोत क्या है, वह सुर्य सामान विशाल है या दीपक सामान छोटा, अथवा उसकी आयू कितनी है| महत्वपूर्ण यह है कि उसकी एक आयू है| क्योंकि प्रकाश का श्रोत होता है, श्रोत के आभाव में प्रकाश का भी आभाव हो जाता है| आँख के बंद कर लेने से अथवा अन्य उपायों से व्यवधान उत्पन्न कर पाने कि स्थिति में प्रकाश आलोपित हो सकता है| क्योंकि प्रकाश कृत्रिम है|
अंधकार अनादि है, अनंन्त है, सर्वव्यापी है| अंधकार का कोई श्रोत नहीं होता अतः उसका अंत भी नहीं होता| कृत्रिम उपचारों से प्रकाश की उपस्थिति में हमें अंधकार के होने का आभास नहीं होता, पर जैसे ही प्रकाश की आयू समाप्त होती है हम अंधकार को स्थितिवत पाते हैं| अंधकार का क्षय नहीं होता| वह अक्षय होता है| अंधकार स्थायी है| अंधकार शिव तुल्य है|
अंधकार को प्रायः अज्ञान का पार्याय भी गिना जाता है| वास्तव में प्रकाश को हम ज्ञान का श्रोत मानते हैं क्योंकि प्रकाश हमें देखने की शक्ति देता है| पर अगर ध्यान दिया जाय तो प्रकाश में हम उतना ही ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं जितना की प्रकाश की परीधि| विज्ञान प्रकाश है| यही कारण है कि जो विज्ञान नहीं देख सकता उसे वह मानता भी नहीं है| वह तब तक किसी तथ्य को स्वीकार नहीं करता जब तक वह उसके प्रकाश की परीधि में नहीं आ जाती| पर यह तो सिद्ध तथ्य है कि विज्ञान अपने इस विचारधारा के कारण हर बार अपनी ही जीत पर लज्जित हुआ है| क्योंकि हर बार जब विज्ञान ने कुछ ऐसा नया खोजा है जिसे खोज के पहले उसने ही नकारा था तो वस्तुतः उसने स्वयं की विचारधारा की खामियों को ही उजागर किया है| हर खोज विज्ञान की पूरानी धारणा को गलत सिद्ध करती हूई नईं धारणा को प्रकाशित करती है जिसे शायद कूछ समयोपरांत कोई नईं धारणा गलत सिद्ध कर दे| क्या यह भ्रातीं मृगतृष्णा (Mirage) नहीं है? स्मरण रहे मृगतृष्णा (Mirage) प्रकाश अथवा दृष्टी का ही दोष है| अंधकार में देखना कठीन अवश्य है पर उसमें दृष्टी दोष नहीं होता| प्रकाश में देखने में अभ्यस्त हमारी आँखें अंधकार मे सही प्रकार देख नहीं सकतीं पर अंधकार में देखने में अभ्यस्त आँखें प्रकाश में स्वतः ही देख सकती हैं| निर्णय?
जब हमरी मंजिल भौगोलिक होती है नजदीक होती है तो प्रकाश सहायक होता है| पर हिन्दू धर्म, तथा प्रायः हर धर्म एवं आस्था के अनुसार मानव जाति की सर्वोच्च ईच्छा मोक्ष (Salvation) होती है| मोक्ष क्या है? ईच्छाओं का अन्त | जब कोई ईच्छा नहीं, कोई मंजिल नहीं कोई जरूरत नहीं तो वहां क्या होगा| अंधकार| सर्वव्यापी एवं अनन्त अंधकार| तब हम शिव को प्राप्त कर लेते हैं| यह तो विज्ञान भी मानेगा की अनेक महत्वपूर्ण खोज स्वपन में हुए हैं | तथा वहाँ अंधकार का सामराज्य है|
सृष्टी विस्तृत है| हमारी विशाल धरती सौर्यमंडल का एक छोटा सा कण मात्र है| सूर्य में सैकडों पृथ्वी समाहित हो सकती हैं| पर सूर्य अपने नवग्रहों तथा उपग्रहों के साथ आकाश गंगा (Milky way galaxy) का एक छोटा तथा गैर महत्वपूर्ण सदस्य मात्र है| आकाश गंगा में एसे सहस्रों तारामंडल विद्यमान हैं| वे सारे विराट ग्रह, नक्षत्र जिनका समस्त ज्ञान तक उपलब्द्ध नहीं हो पाया है शिव की सृष्टी है| पर प्रश्न यह है कि यह विशाल सामराज्य स्थित कहाँ है? वह विशाल शून्य क्या है जिसने इस समूचे सृष्टी को धारण कर रखा है? वह विशाल शून्य वह अंधकार पिण्ड शिव है| शिव ने ही सृष्टी धारण कर रखी है| वे ही सर्वसमुद्ध कारण हैं| वे ही संपूर्ण सृष्टी के मूल हैं, कारण हैं|
किसका चिंतन करें – प्रकाश या अन्धकार ?
जीवित अवस्था में प्रकाश का ध्यान करने के अलावा और दूसरा पर्याय मुझे समझ नहीं आता है| जीवन प्रकाश पर ही निर्भर करता है| हिन्दू ही नहीं लगभग सभी प्राचीन धर्म सूर्य उपासक रहे हैं| जिस प्रकार जीवन काल में मनुष्य कर्म किये बिना रहा ही नहीं सकता है उसी प्रकार जीव के लिए प्रकाश का ध्यान नहीं करने का तो प्रश्न ही नहीं है|पर क्या प्रकाश का ध्यान अंधकार के ध्यान में बाधक है? यहाँ तात्पर्य सिर्फ हे है कि अन्धकार का एक अति व्यापक अर्थ है जिसे नकारा नहीं जाना चाहिय| अंधकार स्थाई है, अनादि है, अनंत भी| फिर उसकी उपेक्षा कैसे की जाय ओर क्यों? और वैसे भी मोक्ष का ध्यान जीवित अवस्था में ही करना होता है| जब हम उस अन्धकार में विलीन हो जायेंगे तो फिर ध्यान करने का वक्ता होगा या नहीं ये किसी को नहीं है पता|
मेरे विचार में सिर्फ प्रकाश का ध्यान हमें पुनर्जन्म की और ले जायगा और मोक्ष का चिंतन जो की वास्तव में सर्वव्यापक अंधकार रुपी शिव का ही चिंतन है मोक्ष पाने में साहायक होगा|



दुष्ट रावण भूलोक ही नहीं बल्कि देवलोक में भी हाहाकार मचायेगा. उसे रोकिये. तब तक तो रावण गोकर्ण तक पहुँच ही गया था. विष्णु ने अपना करतब दिखाया. मध्याह्न में ही सूर्य को ढँक कर संध्या का भ्रम निर्मित किया. रावण शिव जी की सांध्य पूजा किया करता था. अब वह धर्म संकट में पड़ गया. इस बीच नारद ने गणेश जी को भी पटा लिया था जिसके कारण गणेश जी स्वयं ब्राह्मण के वेश में रावण के समीप प्रकट हो गए. रावण ने उस ब्राह्मण स्वरुप गणेश जी से आग्रह किया कि वह उस अत्मलिंग को अपने हाथों में रखे ताकि वह सांध्य पूजा कर सके. ब्राह्मण ने बात मान ली परन्तु कह भी दिया कि आवश्यकता पड़ने पर तीन बार ही पुकारेगा और फ़िर उस लिंग को छोड़ कर चलता बनेगा. रावण ने “अत्मलिंग” को ब्राह्मण के हवाले कर पूजा करने निकल पड़ा. रावण के जाते ही गणेश जी ने उस लिंग को वहीं (गोकर्ण) रख दिया और अंतर्ध्यान हो गए. रावण अपनी पूजा से निपट कर जब वापस आया तो अत्मलिंग को जड़वत पाया. उसने उठाने कि भरसक कोशिश की पर सफल न हो सका. फ़िर क्रोध में आकर अत्मलिंग के अलग अलग भागों को उखाड़ कर इधर उधर फेंकने लगा. जिस वस्त्र से लिंग ढंका हुआ था वह आकर मुरुदेश्वर में गिरा और तब से एक महत्वपूर्ण शिव क्षेत्र के रूप में प्रसिद्द हुआ.
यहाँ का प्राचीन शिव मन्दिर समुद्र के किनारे कंदुकागिरी पर बना है और उसकी बनावट, शिल्प आदि से चालुक्य – कदम्ब शैलियों का मिश्रित प्रभाव परिलक्षित होता है. मन्दिर के अन्दर के शिल्प और कलात्मकता लुभावनी है. इस मन्दिर की देखरेख के लिए प्रबंधक के रूप में श्री मंजुनाथ शेट्टी अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होने स्वेच्छा से सिंडिकेट बैंक के अपने अधिकारी पद से सेवा निवृत्ति ले ली थी. यहाँ की एक विशेषता यह है कि इस मन्दिर के आस पास भीख मांगने वाले नहीं दिखेंगे. कोई भी दूकानदार पूजा सामग्री खरीदने के लिए भी आपके पीछे नहीं पड़ेगा. कुछ बच्चे जरूर घूम रहे होते हैं जो वहां के चित्रों को बेचने में लगे हैं. पाँच रुपये के दस. मन्दिर के पीछे एक पुराना किला भी है और कहा जाता है कि टीपू सुलतान ने इस किले का जीर्णोद्धार कराया था.
मुरुदेश्वर की आज कल की प्रसिद्धि तो यहाँ के विशाल शिव जी के कारण हो गई है. यह प्रतिमा उसी कंदुका गिरी के शीर्ष पर बनी है, पुराने मन्दिर के ऊपर कुछ दायीं ओर. मूर्ति की ऊँचाई १२३ फीट है जिसके कारण दूर दूर से ही दिखाई भी देती है. शिव जी के एकदम नीचे पैरों तले एक सुरंग नुमा हाल है. यहाँ पर पौराणिक कथाओं के आधार पर झांकिया बनी हैं. रावण, गणेश जी ब्राह्मण के वेश में और ऐसी ही कथाओं से सम्बंधित अन्य प्रतिमाएँ रखी है. इनके बारे में कन्नड़ और हिन्दी में कमेंट्री चलती है. अतिरिक्त शुल्क देकर अंग्रेजी का केसेट भी लगवाया जा सकता है. यह सब अभी अभी ही किया गया है. जहाँ एक तरफ़ शिव जी की यह प्रतिमा विशालतम है वहीं इन तक आने के लिए सिंह द्वार पर राजगोपुरम जो बना है वह भी बेमिसाल है. इसकी ऊँचाई २४९ फीट है और इसके मुकाबले कोई दूसरा गोपुरम नहीं है. गोपुरम के दरवाजे पर ही दो विशाल हाथी द्वारपाल के रूप में बनाये गए हैं. इस पहाडी के तीन ओर समुद्र है जो अपेक्षाकृत शांत है. लगा हुआ बीच भी है जो साफ़ सुथरी और मनमोहक है. यहाँ नग्न या अर्ध नग्नावस्था में रेत पर लेटे रहना निषिद्ध है हलाकि विदेशी पर्यटकों की यहाँ कोई कमी नहीं है. कुछ दूरी पर रेत पर ही कई नौकाएं दिखेंगी. शाम होते होते समुद्र से आखेट कर नौकाएं वापस आती दिखती हैं. उनके वापसी पर वहां मछलियों की बिक्री भी होती देख सकते हैं.
मुरुदेश्वर में इस विश्व के सबसे ऊंचे शिव जी, भव्य राज गोपुरम, पर्यटकों के लिए सुविधाएँ आदि की व्यवस्था करने के लिए पूरा का पूरा श्रेय श्री आर.एन. शेट्टी, को जाता है जो यहाँ के एक प्रमुख उद्योगपति हैं. उन्होंने मुर्देश्वर को एक बड़े पर्यटन केन्द्र के रूप में विकासित करने के लिए ५० करोड़ रुपये की राशि लगायी थी. इन सबके आलावा मुरुदेश्वर में कुछ बहुत ही सुंदर थीम पार्क भी हैं..